अच्छा, तो इसलिए मनाया जाता है करवाचौथ


करवाचौथ एक ऐसा नाम जिसे हम बचपन से सुनते आ रहे है़ं, यह एक व्रत होता है जिसे सुहागन स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ और समृद्धि के लिए रखती है।
 यह तो रही वह बात जो हमे मोटे तौर पर पता है लेकिन क्या आप यह जानते है कि त्योहार कोई एक- दो साल से शुरू हुई परंमरा नहीं है यह कई हजारों साल से किसी ना किसी प्रकार से मनाए जा रहें हैं । हाँ, आधुनिकता ने जरूर इसका रूप बदल दिया है पर भारतीय त्योहारों की यह खूबी रही है कि हर त्योहार के पीछे कोई ना कोई तर्क यानी लॉजिक होता है जब बात करवाचौथ की हो रही है तो आइए जानते है करवाचौथ मनाने के पीछे का राज।
हर त्योहार धर्म या भगवान को याद करने का एक अनुठा तरिका है हिन्दू धर्म में हमें कई त्योहारों का वर्णन उनके धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने से मिलता है करवाचौथ भी उनमे से एक है।

क्या कहती है पौराणिक मान्यताएं और कथाएं

पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक एक साहूकार हुआ करते थे जिनके 7 पुत्र और एक पुत्री थी ऐसा कहा जाता है कि सेठानी समेत उनकी बहुओं और बेटी ने करवाचौथ का व्रत रखा हुआ था। शाम को जब साहुकार के पुत्र काम से वापस लौटे तो रात के भोजन के वक्त उन्होंने बहन को भोजन करने को कहा जिसके उत्तर में बहन ने जवाब दिया भाई ! अभी चांद नहीं निकला है , चांद को अर्घ्य देकर ही भोजन ग्रहण करूंगी। सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे उनसे बहन की बिना भोजन के कारण हुई दुर्दशा देखी ना गई इसलिए उन्होंने एक उपाय निकाला नगर से बाहर जाकर अग्नि जला दी और छलनी ले जाकर उसमे से दूर से आते प्रकाश को दिखाकर बोले देखो बहन! चांद निकल आया है, अर्घ्य देकर भोजन करलो।
खुश होते हुए उसने अपनी भाभियों से  कहां चलिए चांद निकल आया है चलकर अर्घ्य देते है पर वह इस छल को जानती थी उन सबने कहां तेरे भाई तुमसे धोखा करते हुए अग्नि का प्रकाश छलनी से दिखा रहे है , पर उसने भाभियों की बात को अनसुना कर दिया और भाईयों द्वारा दिखाए गए प्रकाश को ही अर्घ्य देकर भोजन कर लिया इस तरह इसका व्रत भंग हो गया जिससे श्री गणेश जी उससे अप्रसन्न हो गए और उसके पति का स्वास्थ बहुत खराब हो गया और घर की सारा धन उसकी बिमारी में लगने लग गया।
पति की यह हालत देखकर उसे अपनी किए हुए दोष का पता चल गया और उसने फिर से पश्चाताप करते हुए चतुर्थी का व्रत रखना शुरू कर दिया। श्रद्धानुसार सभी का आदर, सम्मान और आशीर्वाद ग्रहण करना उसकी रोज की दिनचर्या बन गया उसकी यही श्रद्धा भक्ति को देख भगवान श्री गणेश उसपर प्रसन्न हुए और उसके पति को जीवनदान के रूप में आरोग्य जीवन और धन- संपत्ति से भरपूर कर दिया। इसिलिए ऐसा माना जाता रहा है कि जो भी छल के बिना चतुर्थी का व्रत रखेगा उसे सभी प्रकार का सुख- समृद्धि प्राप्त होगी।   

महाभारत काल में द्रौपदी को श्री कृष्ण ने बतायी थी करवाचौथ की अहमियत

करवाचौथ का व्रत महाभारत काल से चलता आ रहा है ऐसा हम नहीं खुद महाभारत में महातम्य पर एक कथा में इस बात का उल्लेख मिलता है जिसके अनुसार करवाचौथ  की कथा भगवान श्री कृष्ण ने खुद द्रौपदी को सुनाई थी। उन्होंने द्रौपदी को इस व्रत को पूरे विधि-विधान के साथ करने को कहां और यह बताया कि ऐसा करने पर पति की लंबी उम्र होती है और सभी प्रकार के दुखों का नाश होता है तथा दांपत्य जीवन में सुख- समृद्धि की प्राप्ति होती है श्री कृष्ण की बातों का अनुसरण करते हुए दौपदी ने पूरे विधि- विधान से करवाचौथ का व्रत रखा और उसे पूरा किया। जिसके फलस्वरूप अर्जुन सहित पांच पांडवों ने महाभारत के युद्ध में कौरवों को चित कर जीत हासिल की।

छलनी में ही दिया क्याेें रखा जाता है? जाने इस रहस्य को...

हम सभी जानते है कि करवाचौथ का व्रत बिना छलनी के अधुरा है, लेकिन कभी सोचा है कि छलनी में दिया रखकर ही चांद को क्यों देखा जाता है, आखिर इसके पीछे की वजह क्या है। हम आपको बताते है,  जैसा कि उपर आपने पौराणिक कथा के बारे में पढ़ा जिसमें 7 भाईयों ने किस प्रकार छल से अपनी बहन का व्रत दूर रखे दिए को दिखाकर भंग करवा दिया ऐसा छल भविष्य में किसी शादी- शुदा महिला के साथ ना हो इसीलिए छलनी में ही दिया रख कर चांद को देखने की प्रथा शुरू हुई।

 हिन्दू धर्म में चांद है भगवान स्वरूप पूजनीय

करवाचौथ का व्रत बिना चांद को देखे पूरा नहीं माना जाता इस दिन बेसब्री से चांद का इंतेजार सभी विवाहित स्त्रियों को रहता है पर आप सोचते होंगे कि पति को समर्पित पूजा में चांद को देखकर समाप्त क्यों की जाती है तो आपको बतादे कि हिन्दू मान्यताओं के अनुसार चांद यानी की चंद्रमा को भगवान ब्रह्मा का रूप माना गया है और चांद को लंबी आयु का वरदान मिला हुआ है, चांद में सुंदरता, प्रेम, प्रसिद्धि, शीतलता आदि गुण भी पाए जाते है इसीलिए सभी माहिलाएं चांद को देखकर यह कामना करती है कि यह सारे गुण उनके पति में भी आ जाएं।
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