आजकल चर्चा का विषय बना हुआ है
करतारपुर साहिब या करतारपुर कॉरिडोर। क्या है करतारपुर और क्यों सिख समुदाय इसके
खुलने से है खुश जानने के लिए इस लेख को पूरा पढ़ें।
आजकल चर्चा का विषय बना हुआ है करतारपुर साहिब या करतारपुर कॉरिडोर। क्या है करतारपुर और क्यों सिख समुदाय इसके खुलने से है खुश जानने के लिए इस लेख को पूरा पढ़ें।
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करतारपुर साहिब गुरुद्वारे के बाहर की तस्वीर। |
क्या है करतारपुर साहिब का इतिहास
करतारपुर साहिब जो कि पाकिस्तान के
जिला नारोवाल में स्थित है करतारपुर को सिखों के पहले गुरु श्री गुरु नानक देव जी
ने बसाया था। सन 1522 में सिख धर्म के संस्थापक बाबा गुरु नानक देव जी करतारपुर आए
थे उन्होंने अपने जीवन के आखरी 18 साल
यहीं बिताए थे इसी कारण इस तीर्थ स्थान की अहमियत और बढ़ जाती है जिस स्थान पर 22
सितंबर 1539 को गुरु जी ने अपना शरीर त्यागा आज उसी स्थान पर करतारपुर साहिब
गुरुद्वारा सुशोभित है।
करतारपुर साहिब भारत से सिर्फ 3–4 किमी दूर
करतारपुर साहिब पाकिस्तान के
नारोवाल जिले में है जो भारत के पंजाब के गुरदासपुर जिले के डेरा बाबा नानक से
मात्र तीन से चार किलोमीटर और लाहौर से 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
करतारपुर साहिब कॉरिडोर क्या है और कहां होगा निर्माण
अब तक आपको यह तो समझ आ गया होगा
कि करतारपुर साहिब कहां है अब जानते है इस कॉरिडोर के बारे में, कॉरिडोर यानी गलियारा एक ऐसा भव्य गलियारा जहां से बे रोक – टोक
श्रद्धालु पवित्र स्थल के दर्शन कर सकेंगे खास बात यह है कि दोनो देशों की
सरकारें 2-2 किमी तक अपने फंड से इस
कॉरिडोर का निर्माण करवाएंगे।
पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय सीमा से
लेकर गुरुद्वारा करतारपुर साहिब तक और भारत डेरा बाबा नानक से लेकर बॉर्डर तक। ऐसी
खबरे सुनने में आ रही है कि कॉरिडोर का निर्माण हो जाने पर करतारपुर साहिब के दर्शन
के लिए टिकट उपलब्ध करायी जाएगी जो शाम तक वैध होगी और उसी दिए गए वक्त में आपको
दर्शन करके भारत लौटना होगा।
बंटवारे के 71 साल बाद सुनी गई सिख श्रद्घालुओं की अरदास
कॉरिडोर के बनने से कोई समुदाय
सबसे ज्यादा खुश है तो वह है सिख समुदाय और हो भी क्यों ना आखिर 71 सालों से
दर्शनों के नाम पर सिर्फ दूरबीन होती थी जिसके सहारे वह अपने गुरु के बसाए करतारपुर
को नम आंखें से निहारते थे अब उन आखों में खुशी के आंसू है और चंद महिनों का
इंतजार जब इतिहास के पन्नों को बदलते हुए वह नंगी आंखों से देख सकेंगे। और सच तो
यह है कि सिख संगत की अरदास में भी एक पंक्ति है जिसमें सभी गुरुद्वारों के
दर्शनों दीदार के लिए अरदास की जाती है वो इस कॉरिडोर के बनजाने पर कबूल मानी जाएगी।
1947 से आज तक दूरबीन से कर रहे है दर्शन
अगले साल यानी 2019 में श्री गुरु
नानक देव जी का 550 वाँ प्रकाश पर्व है जो एक एतिहासिक प्रकाश पर्व भी होगा
ऐतिहासिक इस मायने में कि अब सिख श्रद्धालु आसानी से दर्शन कर पाएंगे प्रकाश पर्व
को मनाने के लिए भारत- पाकिस्तान की सरकारों ने मंजूरी दे दी है और इसका
शिलान्यास भी कर दिया गया है।
जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ
तब सिख समुदाय के कई गुरुद्वारे पाकिस्तान की तरफ रह गए जिनमे गुरु नानक देव जी का
जन्मस्थान ननकाना साहिब, पंजा साहिब,
डेरा साहिब और भी कई अहम गुरुद्वारे पाकिस्तान की तरफ चले गए थे
जिनमें से करतारपुर साहिब जो रावी नदी के किनारे स्थित है जिसे भारत में पंजाब के
गुरदासपुर के डेरा बाबा नानक स्थित गुरुद्वारा शहीद बाबा सिद्ध सैन रंधावा में लगी
दूरबीन की मदद से कई सालों से दर्शन करते आ रहे है ।
यह गुरुद्वारा भारत की सीमा से साफ
देखा जा सकता है अक्सर गुरुद्वारे के आस-पास
घास जमा हो जाती है जिसकी कांट- छांट पाकिस्तान सरकार समय से करवाती रहती है तांकि श्रद्धलुओं को
दूरबीन से दर्शन करते समय किसी प्रकार की समस्या ना हो।
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दूरबीन से देखने पर कुछ इस तरह से दिखाई पड़ता है गुरुद्वारा
करतारपुर साहिब।
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कॉरिडोर से भारत-पाक का रिशता होगा
मजबूत और बढ़ेगा टूरिज्म
अगले चार से पाच महीनों तक कॉरिडोर
को बनाने का टारगेट रखा गया है, तीर्थयात्री
बिना वीजा के दर्शन के लिए आ- जा सकेंगे। ऐसे में भविष्य में भारत- पाक के रिशतों में कड़वाहट भी कम होने के पूरे आसार हैं । ऐसा पहली बार
होगा जब लोग बिना रोक-टोक के बार्डर पार कर पाएंगे जिससे पाकिस्तान और पंजाब में
टूरिज्म पहले से और ज्यादा हाने की पूरी
संभावना है ।
करतारपुर साहिब गुरुद्वारे के यह 5 तथ्य आपको जरूर जानने चाहिए
1. गुरु नानक देव जी ने करतारपुर साहिब
से ही सिख धर्म की स्थापना की थी।
2. रावी नदी के तट पर उन्होंने करतारपुर नगर बसाया और वही खेती की और वही से ‘नाम जपो, किरत करो और वंड छको’ जिसका अर्थ है नाम जपों, मेहनत करों और बांटकर खाओं का उपदेश दिया।
3. करतारपुर साहिब गुरुद्वारे से लंगर की परंपरा आरंभ हुई। कहते है यहां जो भी आता था गुरुनानक देव जी उसे बिना खाए जाने नहीं देते थे।
4. गुरुद्वारे में गुरुनानक देव जी की समाधि और कब्र दोनों मौजूद है। समाधि गुरुद्वारे के अंदर है जबकि कब्र बाहर है।
5. इसी पवित्र स्थान में गुरुनानक देव जी ने सन 1539 में समाधि ली थी।
2. रावी नदी के तट पर उन्होंने करतारपुर नगर बसाया और वही खेती की और वही से ‘नाम जपो, किरत करो और वंड छको’ जिसका अर्थ है नाम जपों, मेहनत करों और बांटकर खाओं का उपदेश दिया।
3. करतारपुर साहिब गुरुद्वारे से लंगर की परंपरा आरंभ हुई। कहते है यहां जो भी आता था गुरुनानक देव जी उसे बिना खाए जाने नहीं देते थे।
4. गुरुद्वारे में गुरुनानक देव जी की समाधि और कब्र दोनों मौजूद है। समाधि गुरुद्वारे के अंदर है जबकि कब्र बाहर है।
5. इसी पवित्र स्थान में गुरुनानक देव जी ने सन 1539 में समाधि ली थी।
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